मैं और सौम्या चुपचाप बैठे चाय पी रहे थे कि तभी मेरी नजर सौम्या के पैरों की तरफ गई, वो अपने अंगूठे से जमीन को खुरचने का प्रयास कर रही थी, ऐसा लग रहा था कि वो कुछ कहना चाह रही हो, लेकिन कह नहीं पा रही.मैंने ही शुरूआत करने की सोची, मैंने उसकी तंद्रा को भंग करते हुए पूछा- सौम्या, आपने मुझे क्यों बुलाया?उसने एकदम से चौंक कर मेरी तरफ देखा और फिर नजरें झुका कर बोली- अशोक, मेरे घर में आज से तीन दिन तक कोई नहीं है। क्या तुम मेरे साथ रह सकते हो?‘पर क्यों?’ मैंने पूछा।वो थोड़ी देर तक चुप रही, मैंने एक बार फिर पूछा- आखिर तीन दिन तक मुझे तुम्हारे साथ क्यों रूकना है?वो मेरे आँखों में आँखें डाल कर बोली- मुझे
विवाहिता मेरे पास आकर मेरी गांड चोद रही है
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