मैं तो आपकी चूत को बस थोड़ा आराम देना चाह रहा था बस…””ऑ… मेरा प्यारा बेटा, कितना समझदार है!”बेड पर उल्टा लेटे हुए अपनी गाँड़ की गोलाईयों को अपने दोनों हाथों में भरकर मैंने अपनी गाँड़ को चौड़ा करके खोल दिया, जिससे अमर मेरी गाँड़ के छोटे से गुलाबी छेद में लण्ड आसानी से घुसा सके, ऐसा करते हुए मेरे चेहरे पर चिर परिचित मुस्कान आ गयी।जैसे ही अमर ने मेरे ऊपर आते हुए अपने बदन का भार मेरे ऊपर डाला, मैं मस्त होकर कसमसाकर उठी और मेरे मुँह से हल्की सी चीख निकल गयी। जब अमर मेरी गाँड़ में अपने लण्ड को आसानी से घुसाने के लिये अपने वीर्य के पानी और मेरी चूत के रस से चिकना कर रहा था.तो बस उसकी हल्के हल्के गुर्राने की
गर्म देसी रंडी
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