चॉकलेट नहीँ लेनी क्या?”“बस मैँ यहीं ठीक हूँ, तुम चॉकलेट मुझे यहीँ लाकर दे दो.”“तू कैसी बहकी बहकी बातेँ कर रही है वंदना, तू तो ऐसे रही है जैसे मैँ तुझे खा ही जाऊँगा.”“नहीँ ऐसी बात नहीँ है, बस यूँ ही.”“चल बाबा अब बहुत हुआ”.वह वापस पलटा और वंदना का हाथ पकड़ कर जल्दी से अंदर की ओर बढ़ गया। उसके हाथ की पकड़ इतनी मजबूत थी कि वंदना कुछ सोच पाती उस से पहले ही भीतर तक पहुंच गई। भीतर पहुंचते ही उसने दरवाजा बंद कर दिया।“दरवाजा क्योँ बंद किया रमाकांत?”, वंदना ने हैरान होकर पूछा।“बस… घबराती क्योँ है ?”, वह मुस्कुराता हुआ बोला, ”अभी पता चल जाएगा कि मैंने दरवाजा क्योँ बंद किया”|“मैँ कुछ समझना नहीँ चाहती तुम जल्दी से मुझे चॉकलेट दो, घर जाना है
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